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RBI ने रेपो रेट को स्थिर रखा, CRR में कटौती से नकदी प्रवाह को बढ़ावा

आम मत । न्यूज़ डेस्क (मुंबई) । 6 दिसंबर 2024

RBI Repo Rate: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी दिसंबर मौद्रिक नीति समीक्षा (RBI MPC Meeting December 2024) में महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिनका उद्देश्य आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना और वित्तीय प्रणाली में नकदी प्रवाह को मजबूत करना है। केंद्रीय बैंक ने लगातार 11वीं बार रेपो रेट 6.5% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया है, जबकि कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को 50 बेसिस पॉइंट घटाकर 4% कर दिया। यह कदम बैंकिंग प्रणाली में ₹1.16 लाख करोड़ की नकदी उपलब्ध कराएगा।


नीतिगत फैसलों का विवरण – RBI Repo Rate & CRR Cut

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RBI MPC Meeting December 2024: 6 दिसंबर 2024 को, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित किया। बैठक, जो 4 दिसंबर से 6 दिसंबर के बीच हुई, में रेपो रेट को 6.50% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही,

  • स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) को 6.25%,
  • मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) और बैंक रेट को 6.75% पर स्थिर रखा गया।

यह निर्णय 4:2 के बहुमत से लिया गया और यह स्पष्ट करता है कि फरवरी 2023 से आरबीआई ने ब्याज दरों में किसी बदलाव की आवश्यकता महसूस नहीं की है।


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CRR में कटौती: आर्थिक नकदी का प्रवाह बढ़ाने का प्रयास

आरबीआई ने कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को 4% तक कम कर दिया है। इस कदम से बैंकिंग प्रणाली में ₹1.16 लाख करोड़ की नकदी उपलब्ध होगी। यह निर्णय विशेष रूप से उन परिस्थितियों में लिया गया है जब बाजार में तरलता की कमी और बढ़ते वित्तीय दबाव का खतरा बना हुआ है।

नकदी प्रवाह को बढ़ावा देने वाला यह कदम बैंकों को अधिक उधार देने में सक्षम बनाएगा, जिससे खुदरा और वाणिज्यिक क्षेत्र में ऋण प्रवाह में सुधार होगा।


मुद्रास्फीति और विकास दर का परिदृश्य

आरबीआई ने FY25 के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को संशोधित कर 4.8% कर दिया है, जो पहले 4.5% था। यह संशोधन बढ़ती वैश्विक और घरेलू अनिश्चितताओं को दर्शाता है।

इसके साथ ही, केंद्रीय बैंक ने GDP ग्रोथ का अनुमान 6.6% तक घटा दिया, जो पहले 7.2% था। यह कटौती संकेत देती है कि आर्थिक वृद्धि में अपेक्षित धीमापन आ सकता है, जबकि केंद्रीय बैंक का प्राथमिक ध्यान मूल्य स्थिरता पर है।


मौद्रिक नीति की ‘न्यूट्रल’ स्थिति

आरबीआई ने अपने न्यूट्रल स्टांस को बरकरार रखा है, जिसमें यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर रहे और आर्थिक विकास को भी समर्थन मिले।

गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, “हमारी प्राथमिकता मूल्य स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना है।”


आरबीआई के फैसले के पीछे की मुख्य वजहें

  1. वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता: अमेरिकी फेडरल रिजर्व और अन्य केंद्रीय बैंकों की सख्त मौद्रिक नीतियों ने वैश्विक आर्थिक प्रणाली पर दबाव डाला है।
  2. घरेलू आर्थिक चुनौतियां:
    भारत में मांग और आपूर्ति के असंतुलन ने महंगाई को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
  3. बढ़ती मुद्रास्फीति:
    खाद्य और ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी ने मुद्रास्फीति को प्रभावित किया है।

निवेशकों और आम जनता पर प्रभाव

सकारात्मक पहलू

  • सस्ती ब्याज दरें: रेपो रेट स्थिर रहने से व्यक्तिगत और वाणिज्यिक ऋण पर ब्याज दरें नियंत्रित रहेंगी।
  • नकदी का प्रवाह: CRR में कटौती से बैंक अधिक उधार दे सकेंगे, जिससे बाजार में निवेश और खर्च बढ़ेगा।

चुनौतियां

  • मुद्रास्फीति का खतरा: मुद्रास्फीति में वृद्धि घरेलू खर्च को प्रभावित कर सकती है।
  • आर्थिक धीमापन: विकास दर में कटौती संभावित रोजगार अवसरों और औद्योगिक उत्पादन को धीमा कर सकती है।

भविष्य की उम्मीदें

आरबीआई का यह कदम वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण है। लेकिन, आगे की राह चुनौतियों से भरी है। मुद्रास्फीति के प्रभाव को नियंत्रित करने और विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सतर्क नीतियों की आवश्यकता होगी।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

आरबीआई ने रेपो रेट क्यों स्थिर रखा?

रेपो रेट स्थिर रखने का उद्देश्य ऋण प्रवाह को नियंत्रित रखना और मुद्रास्फीति को काबू में रखना है।

CRR में कटौती से क्या लाभ होगा?

CRR में कटौती से बैंकों को अधिक उधार देने की क्षमता मिलेगी, जिससे नकदी प्रवाह में सुधार होगा।

GDP ग्रोथ रेट में कटौती का क्या मतलब है?

इसका अर्थ है कि आर्थिक वृद्धि अपेक्षा से धीमी हो सकती है, जिससे उत्पादन और रोजगार पर असर पड़ सकता है।

FY25 के लिए मुद्रास्फीति का अनुमान क्यों बढ़ाया गया?

वैश्विक अनिश्चितताओं और आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधानों ने मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी की आशंका बढ़ाई है।

आरबीआई की न्यूट्रल स्थिति क्या है?

यह मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने की नीति है।



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