दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के पिछले 10 अध्यक्ष: व्यवसाय से लेकर राजनीति तक का सफर
पूर्व डूसू अध्यक्षों का कहना है कि राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाना अब कठिन हो गया है
व्यवसाय चलाने से लेकर दिल्ली चुनाव लड़ने तक, पिछले 10 DUSU अध्यक्ष क्या कर रहे हैं?
खबरों की मुख्य बातें
- DUSU अध्यक्षता से राजनीति तक का सफर
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा से बदलते राजनीतिक समीकरण
- DUSU के अध्यक्षों की राजनीतिक चुनौतियाँ
- छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ने का संघर्ष
- आज के DUSU अध्यक्षों की स्थिति
DUSU अध्यक्षता से राजनीति तक का सफर
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) का चुनाव भारतीय राजनीति में कदम रखने के लिए एक प्रमुख मंच माना जाता था। कई दिग्गज नेताओं जैसे अरुण जेटली (पूर्व वित्त मंत्री), अजय माकन (पूर्व केंद्रीय मंत्री), और नूपुर शर्मा (पूर्व बीजेपी प्रवक्ता) ने DUSU अध्यक्षता को अपने राजनीतिक करियर की नींव के रूप में इस्तेमाल किया। हालांकि, हाल के वर्षों में यह स्पष्ट रास्ता थोड़ा धुंधला हो गया है, और अब छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति तक पहुंचना पहले जैसा सरल नहीं रह गया है।
बढ़ती प्रतिस्पर्धा से बदलते राजनीतिक समीकरण
डूसू के अध्यक्ष रह चुके कई नेताओं के लिए राजनीति का सफर इतना आसान नहीं रहा। अमन अवाना, जिन्होंने 2013-14 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से DUSU की अध्यक्षता की थी, ने 2019 में राजनीति से संन्यास ले लिया। अवाना ने कहा, “राजनीति छोड़ना मेरा व्यक्तिगत निर्णय था। मैं अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताना चाहता था।” अब वह दिल्ली में एक निजी व्यवसाय चला रहे हैं, जो उनके राजनीतिक करियर से पूरी तरह अलग है।
अवाना ने यह भी बताया कि 2014 के बाद भाजपा में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण ABVP के नेताओं के लिए राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा, “पिछले 20 वर्षों में, DUSU का कोई भी निर्वाचित सदस्य राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा नहीं हुआ है, न ही कोई विधायक बना है।”
DUSU के अध्यक्षों की राजनीतिक चुनौतियाँ
मोहित नागर, जिन्होंने 2014-15 में डूसू की अध्यक्षता की, ने अपने राजनीतिक करियर को जारी रखा और अब वह भाजपा युवा मोर्चा के दिल्ली राज्य सचिव हैं। हालांकि, नगर मानते हैं कि छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति तक का सफर अब बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- दिल्ली राज्य सचिव: मोहित नागर वर्तमान में भाजपा के युवा मोर्चा के उत्तर-पूर्वी दिल्ली क्षेत्र के प्रभारी हैं, जहाँ वे रक्तदान और खाद्य वितरण जैसी अभियानों का आयोजन करते हैं।
- सफलता के लिए समय की आवश्यकता: नागर का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए अब अधिक समय और संघर्ष की जरूरत होती है।
छात्र राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति की ओर बढ़ने का संघर्ष
सतेंद्र अवाना, जिन्होंने 2015-16 में डूसू की अध्यक्षता की, इस बात से सहमत हैं कि छात्र राजनीति में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। उन्होंने ABVP के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद में सेवा की और बाद में भाजपा युवा मोर्चा के उत्तर प्रदेश उपाध्यक्ष बने।
अवाना ने कहा, “भाजपा का गठन ABVP के बाद हुआ था, इसलिए पहले छात्र नेताओं के पास भाजपा में सीधे प्रवेश का मौका था। लेकिन अब पिछले दशक में ऐसी कोई जगह नहीं रही है।”
इसी तरह, अमित तनवार, जिन्होंने 2016-17 में DUSU की अध्यक्षता की थी, का मानना है कि ABVP से भाजपा में शामिल होने के लिए उन्हें शून्य से शुरुआत करनी पड़ी। उन्होंने कहा, “दोनों संगठनों के बीच केवल विचारधारा मेल खाती है, लेकिन यदि कोई ABVP से DUSU चुनाव जीतता है और भाजपा में जाना चाहता है, तो उसे फिर से शुरुआत करनी पड़ेगी।”
आज के DUSU अध्यक्षों की स्थिति
हाल के वर्षों में DUSU के कई अध्यक्षों को राजनीतिक सफलताएँ मिलनी मुश्किल रही हैं। रॉकी तुसीद, जो 2017 में कांग्रेस समर्थित NSUI के उम्मीदवार के रूप में DUSU के अध्यक्ष बने थे, ने 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में राजेंद्र नगर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। तुसीद अब कांग्रेस के युवा विंग के राष्ट्रीय सचिव हैं और अपनी राजनीतिक प्रगति को पार्टी की युवा नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित करने का परिणाम मानते हैं।
दूसरी ओर, शक्ति सिंह, जिन्होंने 2018 में डूसू की अध्यक्षता संभाली, अब भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी हैं और 2023 और 2024 में G20 और Y20 सम्मेलनों में प्रतिनिधि रहे हैं।
अक्षित दहिया, जिन्होंने 2019 में DUSU अध्यक्ष पद संभाला, महामारी के कारण तीन साल तक DUSU अध्यक्ष रहे। दहिया का मानना है कि 1975 के आपातकाल ने कई छात्र नेताओं को जन्म दिया, जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में सफलता प्राप्त की। दहिया वर्तमान में भाजपा के हरियाणा में युवा राज्य उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
डूसू अध्यक्षता एक समय राष्ट्रीय राजनीति का प्रवेशद्वार मानी जाती थी, लेकिन अब यह राह पहले जैसी सरल नहीं रही। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक गतिशीलता ने इसे और कठिन बना दिया है। हाल के वर्षों में DUSU के अध्यक्षों के लिए राष्ट्रीय राजनीति में उन्नति का मार्ग कठिन साबित हुआ है, और अधिकांश को अपने राजनीतिक करियर को फिर से खड़ा करने के लिए जमीनी स्तर से शुरू करना पड़ा है।
हालांकि, कुछ नेताओं ने चुनौतियों का सामना करते हुए अपने राजनीतिक सफर को जारी रखा है, लेकिन अब यह स्पष्ट है कि DUSU अध्यक्ष बनने से राजनीति में तेज उन्नति की संभावना कम हो गई है। फिर भी, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए DUSU एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है, और इसके माध्यम से युवा नेताओं को राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने का मौका मिलता रहेगा।
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