आम मत | नई दिल्ली
इंडियन एयरफोर्स (IAF) को पायलटों की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। एक मैग्जीन की ओर से डाली गई RTI (सूचना के अधिकार) याचिका के तहत एयरफोर्स ने जवाब दिया। वायुसेना ने कहा कि पिछले 10 सालों में 798 पायलट इस्तीफा दे चुके हैं।
आरटीआई में बताया गया कि राज्यसभा को एक फरवरी 2018 को सूचित किया गया कि एयरफोर्स के 3855 पायलट हैं, जो 4851 की स्वीकृत शक्ति की तुलना में 376 कम हैं। ये स्थिति वायुसेना के अनुकूल नहीं है। वहीं, 2016 में 100 तो वर्ष 2017 में 114 पायलटों ने इस्तीफा दिया था। इसी तरह, साल 2015 में वायुसेना के 37 पायलट ने रिजाइन दे दिया था। 2015 वो साल रहा, जिसमें बीते एक दशक के किसी भी साल की तुलना में सबसे कम पायलट वायुसेना से अलग हुए। नहीं तो हर साल औसतन 80 पायलट इस्तीफे दे रहे हैं।
10 सालों में 798 पायलट छोड़ चुके वायुसेना. एक तिहाई उड़ा रहे प्राइवेट फ्लाइट्स
आरटीआई में यह भी पूछा गया था कि वायुसेना से इस्तीफा देने वाले कितने पायलटों ने प्राइवेट एयरलाइंस ज्वॉइन की। इसके जवाब में वायुसेना ने बताया कि प्राइवेट एयरलाइंस में शामिल होने वाले पायलट की जानकारी इसलिए नहीं दी जा सकती, क्योंकि इनके बारे में कोई डेटा नहीं रखा जाता है। जानकारी के अनुसार, बीते 10 सालों में इस्तीफा देने वाले 798 में से 289 को प्राइवेट एयरलाइंस की फ्लाइट्स के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट मिला। यानी वायुसेना छोड़कर गए पायलट में से एक तिहाई कॉमर्शियल फ्लाइट्स उड़ा रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, वायुसेना का एक मध्य स्तर का पायलट एक महीने में तकरीबन 2 लाख कमाता है। वहीं, प्राइवेट एयरलाइंस में शामिल होने पर उनका वेतन में चार गुना तक बढ़ जाता है। साथ ही, अगर पायलट 20 साल तक वायुसेना की सेवा करता है और उसके बाद नौकरी छोड़ देता है तो वे पेंशन का भी हकदार होता है।