आम मत | नई दिल्ली
भारत में बुधवार यानी 29 जुलाई का दिन पूरे देश के लिए यादगार बनने वाला है। इसका कारण राफेल फाइटर जेट की पहली खेप के 5 विमानों का भारत पहुंचना है। 29 जुलाई को ये फाइटर जेट भारत पहुंच जाएंगे। फ्रांस से ये विमान भारत के लिए सोमवार को उड़ान भर चुके हैं। इन विमानों को अंबाला स्थित एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात किया जाएगा।
फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट से भारत इन 59 हजार करोड़ में 36 राफेल फाइटर जेट खरीद रहा है। पहली खेप के रूप में 5 विमान 29 जुलाई को प्राप्त हो जाएंगे। बाकी बचे 31 विमान 2022 तक भारत को मिलेंगे।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल 8 अक्टूबर विजयदशमी के दिन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने फ्रांस में इन विमानों का पूजन किया था। यूपीए-2 में डसॉल्ट से भारत सरकार ने 126 राफेल की डील फाइनल की थी। इसे 2015 में मोदी सरकार ने कैंसिल कर दिया था। इसके बाद सितंबर 2016 में फिर से डील की गई। इसमें 59 हजार करोड़ रुपए में 36 विमान खरीदने पर मंजूरी हुई।
डसॉल्ट से डील में क्या?
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट से हुई डील में क्या प्रमुखता है वह आपको बताते हैं।
- 58 हजार 891 करोड़ रुपए की कुल डील (अनुमानित)
- 28 सिंगल सीटर और 8 डबल सीटर जेट खरीदे जाएंगे
- 59 हजार करोड़ की डील में जोड़ा गया था 50 प्रतिशत वैल्यू का ऑफसेट क्लॉज
- ऑफसेट क्लॉज यानी कंपनी कुल डील का 50 प्रतिशत रकम का निवेश भारत में करेगी।
- मोदी सरकार ने ऑफसेट क्लॉज पार्टनर अनिल अंबानी की नई कंपनी को बनाया था। इसे लेकर उठा था विवाद।
राफेल की डील का यह है इतिहास
भारत ने अंतिम बार वर्ष 1997-98 में फाइटर जेट की खरीद की थी। यह फाइटर जेट हैं सुखोई विमान। भारत ने यह विमान रूस से खरीदे थे।
इसके बाद 2001 में भारत ने 126 फाइटर जेट खरीदने का फैसला किया। इसके बाद यह मामला करीब 7 साल ठंडे बस्ते में चला गया।
साल 2008 में 4 कंपनियों ने इसके लिए बोली लगाई। इसमें अमेरिका की बोइंग, रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन, स्वीडन की साब और फ्रांस की डसॉल्ट कंपनियां थीं।
वर्ष 2012 में फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट को इसका ऑर्डर दिया गया। वर्ष 2014 में आई मोदी सरकार ने सौदे को रद्द कर दिया।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डसॉल्ट से 126 की जगह 36 राफेल विमानों की डील साइन की। 29 जुलाई 2020 को 36 विमानों की पहली खेप के 5 विमान भारत को मिलने जा रहे हैं।
इन खूबियों से लैस है राफेल विमान
- इसे राडार क्रॉस सेक्शन और इंफ्रा रेड सिग्नेचर के साथ डेवलप किया गया है।
- ग्लास कॉकपिट में कम्प्यूटर सिस्टम भी है, जो पायलट को कंट्रोल और कमांड में मदद करेगा।
- राफेल में एम88 इंजन हैं, जो काफी दमदार होता है। साथ ही, इसमें अत्याधुनिक एवियोनिक्स सूट भी दिया गया है।
- राफेल सिंगल और डबल सीटर फाइटर जेट ट्विन इंजन, डेल्टा-विंग, सेमी स्टील्थ कैपेबिलिटी भी है।
- यह परमाणु हमला करने की भी क्षमता रखता है। राफेल का यह संस्करण चौथी जनरेशन का विमान है।
- राफेल में एक बार में 4700 किलो ईंधन भरा जा सकता है। एक बार फ्यूल भरने पर यह 10 घंटे तक उड़ सकता है।
- इसमें मिसाइल एप्रोच वॉर्निंग अलर्ट, लेजर वॉर्निंग, राडार वॉर्निंग सिस्टम भी दिया गया है। इसका राडार सिस्टम 100 किमी दूर के टारगेट को भी डिटेक्ट कर सकता है।
- इसमें सिंथेटिक अपरचर राडार लगाया गया है, जो आसानी से जाम नहीं हो सकता।
- राफेल में 30 एमएम की बंदूक भी लगाई गई है। जो एक बार में 125 राउंड फायर कर सकती है।
- यह विमान एक बार में 9500 किलो सामान भी ले जा सकता है।
- राफेल की लंबाई 15.30 मीटर, चौड़ाई 10.80 मीटर, ऊंचाई 5.30 मीटर है।
- विमान की टॉप स्पीड 1389 किमी प्रतिघंटा है। हथियारों के साथ इसका कुल वजन 15 हजार किलो है। इसी रेंज 3700 किमी है।
अंबाला एयरबेस ही क्यों बना पहली पसंद?
राफेल फाइटर जेट की पहली खेप के लिए अंबाला एयरबेस चुनने के पीछे कई कारण हैं। इनमें सबसे प्रमुख कारण पाकिस्तान और चीन बॉर्डर से करीबन समान दूरी है। अंबाला एयरबेस से पाकिस्तान बॉर्डर 200 किमी दूर है।
वहीं, लेह स्थित चीन का बॉर्डर 300 किमी दूरी पर स्थित है। इन स्थानों पर दोनों देशों (पाकिस्तान और चीन) के एयरबेस हैं। भारत की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान का सरगोधा एयरबेस है तो वहीं, लेह सीमा पर चीन का गरगुंसा एयरबेस है।
यानी अंबाला एयरबेस के दोनों देशों से लगने वाली सीमाओं के मध्य में होने के कारण पहली खेप को यहां पर तैनात किया गया है। राफेल की अगली खेप को पश्चिम बंगाल के हाशिमारा एयरबेस पर तैनात किया जाएगा।