आम मत | नई दिल्ली
आप सभी ने भगवान शिव की मूर्ति या फोटो अवश्य देखी होगी। इसमें वे सिर पर चंद्रमा, गले में सर्प (सांप), सिर की जटाओं में गंगा और हाथ में त्रिशूल-डमरू को धारण किए दिखाई देते हैं। आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव इन चीजों को धारण क्यों करते हैं। नहीं ना, चलिए तो इस बार हम आपको इन्हीं सब चीजों से अवगत कराएंगे। वैसे भी 11 मार्च को महाशिवरात्रि है। इस दिन देवाधिदेव शिव ने माता पार्वती से विवाह रचाया था।
गंगा के तेज वेग को संभाला
पौराणिक कथा के अनुसार अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए भागीरथ ने माता गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर मां गंगा पृथ्वी पर आने को तैयार हो गईं, परंतु उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी। तब भागीरथ ने भगवान भोलेनाथ की आराधना की। महादेव उनकी पूजा से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। तब भागीरथ ने सारा कथन बताया। इसके बाद भगवान ने गंगा को अपनी जटा में धारण कर लिया।
चंद्रमा को दिलाई श्राप से मुक्ति
एक कथा के अनुसार महाराज दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था, परंतु चंद्रमा को रोहिणी से अत्यधिक प्रेम था। तब दक्ष की पुत्रियों नें इस बात की शिकायत उनसे की तो दक्ष ने क्रोध में चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। जिसके बाद चंद्रमा नें भोलेनाथ की पूजा-आराधना की। जिसके फलस्वरूप भगवान भोलेनाथ की कृपा से चंद्रमा को क्षय रोग से मुक्ति प्राप्त हो गई। इसके साथ ही चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें मस्तक पर धारण किया।
नागराज वासुकी को किया गले में धारण
भगवान शिव ही एक ऐसे देवता है जो अपने गले में आभूषणों के स्थान पर सर्प धारण करते हैं। क्या आपको पता है कि यह कौन सा सर्प है? पौराणिक कथाओं के अनुसार वासुकी नाग भगवान शिव के परम भक्त थे। जब अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन हुआ तब वासुकी नाग को रस्सी के स्थान पर प्रयोग किया था। उनकी भक्ति से भगवान भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वासुकी को नागलोक का राजा बनाया और गले में आभूषण के रूप में धारण किया।
भस्मः शरीर नश्वर है
भगवान भोले नाथ अपने शरीर पर भस्म धारण करते हैं। कहा जाता है कि वे शमशान के निवासी हैं। भगवान शिव को कालों का भी काल माना गया है। शरीर पर भस्म धारण करके संसार के यह संदेश देते हैं कि यह शरीर नश्वर है। इसलिए मिट्टी की काया पर कभी भी अभिमान नहीं करना चाहिए।
14 बार डमरू बजाकर उत्पन्न किए थे सुर-ताल
पौराणिक कथा के अनुसार त्रिशूल की तरह ही डमरू भी भगवान शिव के साथ उनके प्राकट्य से जुड़ा हुआ है। जब भगवान शिव प्रकट हुए तब उन्होंने 14 बार डमरू बजाया और नृत्य किया जिससे सुर और ताल का जन्म हुआ। इस तरह से सृष्टि में सामजंस्य बनाने के लिए भगवान शिव अपने हाथों में सदैव डमरू धारण करते हैं।