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सचिन पायलट के बगावती तेवरों के पीछे कुछ ऐसी है कहानी

आम मत | नई दिल्ली / जयपुर

राजस्थान में सियासी उठापटक का दौर अभी भी जारी है। सचिन पायलट की बगावत के पीछे तीन कारण निकल कर सामने आ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो सचिन पायलट के बगावती तेवरों के पीछे कुछ कारण अहम है।

इनमें से पहला कारण है कि पायलट अपने खेमे के 4 विधायकों को मंत्री बनाना चाहते हैं। दूसरा कारण है कि पायलट डिप्टी सीएम के साथ ही गृह और वित्त मंत्रालय भी खुद के पास रखना चाहते हैं। पायलट की बगावत का तीसरा कारण है कि वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) अध्यक्ष पद भी अपने ही पास रखना चाहते हैं।

गहलोत ने किया शक्ति प्रदर्शन, सचिन बोले- 30 विधायकों का है समर्थन

दूसरी ओर, दोपहर में हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 100 विधायकों की परेड कराई। इसके जरिए सीएम गहलोत ने शक्ति प्रदर्शन किया। इसके बावजूद गहलोत डिप्टी सीएम सचिन पायलट को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। इधर, सचिन पायलट ने दावा किया कि सीएम गहलोत के पास 84 विधायकों का ही समर्थन है, बाकी के विधायक उनके साथ है। वे अपने कुछ समर्थक विधायकों के साथ गुरुग्राम के एक होटल में ठहरे हुए हैं।

विधानसभा चुनाव जीत का श्रेय नहीं मिलने से भी पायलट थे नाराज

सचिन पायलट की नाराजगी के पीछे एक ओर कहानी सामने आ रही है। इस कहानी के अनुसार, राजस्थान विधानसभा चुनाव में जीत के पीछे पायलट की ग्राउंड लेवल पर की गई मेहनत भी अहम थी। उन्हें उम्मीद थी आलाकमान उनकी मेहनत के पुरस्कार के तौर पर उन्हें सीएम पद देगी। लेकिन उनकी उम्मीदें तब टूटी, जब आलाकमान ने एक बार फिर से अशोक गहलोत को ही मुख्यमंत्री पद संभलाया। इससे सचिन पायलट तो नाराज हुए ही। साथ ही, गुर्जर समाज ने पायलट के फेवर में हंगामा शुरू कर दिया। कई जगह हिंसा भी हुई। गुर्जर समाज के इस गुस्से और पायलट की नाराजगी को दूर करने के तौर पर डिप्टी सीएम पद उन्हें दिला दिया।

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सीएम गहलोत के पास अहम विभाग

भले ही, उस समय सचिन पायलट की नाराजगी कुछ हद तक दूर हुई थी। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब सीएम अशोक सरकार में पहले कैबिनेट के बंटवारे के दौरान अहम पदों को अपने पास रखा। गहलोत ने सचिन पायलट को डिप्टी सीएम पद के साथ पीडब्ल्यूडी, पंचायती राज, रुरल डेवलेपमेंट, साइंस और टेक्नोलॉजी जैसे विभाग दिए गए हैं। वहीं, गहलोत ने अपने पास वित्त, आबकारी, गृह, इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एवं कम्यूनिकेशन, पर्सनल डिपार्टमेंट जैसे कई अहम विभाग रखे। इससे पायलट खासे नाराज हुए। हालांकि, उन्होंने कभी खुलकर इसके बारे में नहीं कहा। हालांकि, कई बार उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर पर नाराजगी जरूर जाहिर की थी।

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आलाकमान की वादाखिलाफी से भी नाराज चल रहे थे सचिन

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गहलोत-पायलट के बीच चल रही परेशानी को दूर करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी की थी। पायलट ने सीएम गहलोत पर हमेशा आरोप लगाया कि गहलोत ने सरकार के निर्णयों के दौरान हमेशा उन्हें नजरअंदाज किया है। राजनीति से जुड़े सूत्रों की माने तो पायलट को विधानसभा चुनाव से पहले कहा गया था कि राजस्थान और उन्हें वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव के कुछ समय तक गहलोत के अनुभव की जरूरत है। इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी जाएगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ और पायलट की नाराजगी बढ़ती गई।

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रविवार रात को ही सचिन पायलट ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से 40 मिनट मुलाकात की थी

पायलट के राजस्थान के ज्योतिरादित्य बनने का डर

फिलहाल तो अशोक गहलोत को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ है। हालांकि, सचिन पायलट अगर नहीं मानें और उनके पास बताए 30 विधायकों का समर्थन हुआ तो यह संख्या गहलोत सरकार को गिराने के लिए काफी है। सचिन पायलट शायद एक सही मौके की तलाश में थे। विधायक खरीद मामले में उन्हें एसआईटी की ओर से भेजे गए नोटिस ने यह मौका दे ही दिया। अब देखना यह कि सोनिया गांधी की ओर से भेजे गए पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता पायलट की नाराजगी दूर कर पाते हैं या नहीं। अगर वे पायलट की नाराजगी दूर कर पाए तो यह कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहेगा। अगर पायलट राजस्थान के ज्योतिरादित्य बनकर भाजपा के पाले में चले गए तो राजस्थान में भी मध्यप्रदेश का इतिहास दोहराया जा सकता है।

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