आम मत | नई दिल्ली
अपराधियों द्वारा अपनाए जाने वाले हाइटेक तौर-तरीके पुलिस और डिटेक्टिव एजेंसियों को भी काफी परेशान कर देते हैं। इन्हें रोकने वाले विशेषज्ञों की मांग सबसे अधिक है। तकनीक ने एक ओर जहां लोगों को कई तरह की सहूलियतें दी हैं, वहीं इसके दुरुपयोग के मामले में भी सामने आते रहते हैं। साइबर अपराध तकनीक के दुरुपयोग का एक रूप है, जो काफी घातक साबित हो रहा है। इसके बढ़ते जाल ने एक नई चिंता को जन्म दिया है। इस अपराध को रोकने के लिए क्रिमिनोलॉजी में कुशल पेशेवरों की काफी मांग है।
क्रिमिनोलॉजी अर्थात अपराध-शास्त्र, विज्ञान की ही एक विशिष्ट शाखा है, जिसमें अपराध और उससे बचाव के तौर-तरीकों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। इसका कार्यक्षेत्र अपराधियों की कार्यपद्धति के आधार पर बढ़ता जाता है। कोई भी अपराधी अपराध करने के दौरान जाने-अनजाने कोई न कोई सुराग अवश्य छोड़ता है।
इसमें उसकी उंगलियों के निशान, बाल, खून, थूक या अन्य कोई जैविक सामग्री, अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियार या अन्य सामान जैसी तमाम चीजें आती हैं। ऐसे साक्ष्यों, अपराध के तरीके, प्रकृति और मकसद की गहन पड़ताल के जरिये अपराधी तक पहुंचा जा सकता है। इन गुत्थियों को सुलझाकर अपराधियों का तिलिस्म उजागर करने वाले पेशेवरों को क्रिमिनोलॉजिस्ट (अपराध विज्ञानी) के नाम से जाना जाता है।
इन क्रिमिनोलॉजिस्ट ने अनेक अपराधों से जुड़ी बेहद जटिल गुत्थियां सुलझाकर अपराधियों को न्याय के कठघरे तक पहुंचाने में मदद की है। इस रोमांचक करियर से तभी जुड़ा जा सकता है, जब क्रिमिनोलॉजी का औपचारिक अध्ययन पूरा किया जाए।
फोरेंसिक साइंस से अलग है क्रिमिनोलॉजी
अकसर लोग फॉरेंसिक साइंस और क्रिमिनोलॉजी को एक ही समझ बैठते हैं, जबकि ये दोनों अलग-अलग हैं। फॉरेंसिक साइंस क्रिमिनोलॉजी का एक हिस्सा है, जो यह बताता है कि क्रिमिनोलॉजिस्ट किस तरह से अपने साक्ष्यों का अध्ययन और प्रयोग कर सकते हैं। डीएनए जांच, फिंगर प्रिंट संबंधी कार्य फॉरेंसिक साइंस में आते हैं, जबकि क्रिमिनोलॉजी में घटना-स्थल से सबूत जुटाने, अपराध से संबंधित परिस्थितियों का अध्ययन करने, अपराध करने के कारण तथा समाज पर उसके असर की परख करने और जांच दल की मदद करने जैसे काम शामिल हैं।
जॉब के साथ भी कर सकते हैं कोर्स
यदि आप ग्रेजुएट हैं तो क्रिमिनोलॉजी में दो वर्षीय पीजी डिप्लोमा कर सकते हैं। उसके बाद एक वर्षीय मास्टर डिग्री अथवा पीएचडी भी कर सकते हैं। पीएचडी के दौरान विश्वविद्यालय में अपराध की जटिलताओं, अपराध के कारणों तथा उनके निवारण में प्रयुक्त कदम, अपराधियों की प्रवृत्ति आदि पर शोध या अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। ग्रेजुएट लॉ के लिए भी क्रिमिनोलॉजी में विशेष कोर्स करवाए जाते हैं। इस कोर्स के लिए वे उम्मीदवार भी योग्य हो सकते हैं, जो नौकरी पेशा हैं। आईएफएस जैसी कई संस्थाएं हैं, जो 3 से 6 माह तक के सर्टिफिकेट एवं एडवांस डिप्लोमा कोर्स करवाती हैं।
सिलेबस में यह सब है शामिल
क्रिमिनोलॉजी के तहत पुलिस प्रशासन, मानवीय चाल-चलन आदि की विस्तृत जानकारी छात्रों को दी जाती है। अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए साक्ष्यों एवं सबूतों के विश्लेषण की बारीकियां बताई जाती हैं। इसमें प्रमुख रूप से क्रिमिनोलॉजी के सिद्धांत, क्रिमिनल लॉ, पुलिस-प्रशासन, समाजशास्त्र, इतिहास, अपराध का मनोविज्ञान आदि शामिल किये जाते हैं। उल्लेखनीय यह है कि इसमें लगातार हो रहे प्रयोगों को शामिल किया जाता है। अपराधियों के तेजी से बढ़ते नेटवर्क एवं साइबर अपराध को देखते हुए इसे भी पाठ्यक्रम का अंग बनाया गया है, ताकि बदलते समय के साथ क्रिमिनोलॉजी भी अपडेट रहे।
वेतन
गंभीरतापूर्वक कोर्स करने के बाद एक क्रिमिनोलॉजिस्ट को शुरुआती दौर में 30 से 35 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से मिल जाते हैं। तीन-चार साल के अनुभव के बाद वे 50 से 55 हजार रुपए हर महीने कमा सकते हैं। इसके अलावा एक फ्रीलांसर के रूप में काम कर सकते हैं।
कुछ प्रमुख कोर्स
‘ एमए/एमएससी इन क्रिमिनोलॉजी
‘ फोरेंसिक पैथोलॉजी में स्नातकोत्तर
‘ डिप्लोमा इन क्रिमिनोलॉजी
‘ सर्टिफिकेट कोर्स इन क्रिमिनोलॉजी
‘ अपराध विज्ञान में स्नातकोत्तर एवं शोधकार्य
ये हैं इंस्टिट्यूट
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस, नई दिल्ली
लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़
पटना विश्वविद्यालय, बिहार
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास, चेन्नई
डॉ हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय, मध्यप्रदेश
इन पोस्ट पर मिल सकता है काम
‘ क्राइम इंटेलिजेंस
‘ लॉ रिफॉर्म रिसर्चर
‘ फॉरेंसिक एक्सपर्ट
‘ कंज्यूमर एडवोकेट
‘ ड्रग पॉलिसी एडवाइजर
‘ एन्वायर्नमेंट प्रोटेक्शन एनालिस्ट
‘ कम्युनिटी करेक्शन कोऑर्डिनेटर