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विशेष

Chardham: क्या आपको पता है कौनसा है वह धाम जंहा रहते थे कभी स्वयं शिव पार्वती ?

Last updated: दिसम्बर 8, 2023 11:10 पूर्वाह्न
संपादकीय डेस्क
8 Min Read
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CHARDHAM

आपने चार धामों (Chardham) के बारे में तो जरूर सुना, पढ़ा होगा….इस खबर में हम आपको चार धामों (रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, द्वारिका और बदरीनाथ) में से एक धाम के बारे में कुछ रोचक जानकारी उपलब्ध कराएंगे। कुछ ऐसे फैक्ट, जिनके बारे में आपको शायद पता नहीं होगा…

Highlights
  • चलिए अब बदरीनाथ से जुड़ी दूसरी कथा से आपको अवगत कराते हैं….
  • हमें खबरों को और बेहतर करने में मदद करें

आपने चार धामों (Chardham) के बारे में तो जरूर सुना, पढ़ा होगा….इस खबर में हम आपको चार धामों (रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, द्वारिका और बदरीनाथ) में से एक  धाम के बारे में कुछ रोचक जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
हिंदुओं में चार धामों यानी रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी, द्वारिका और बदरीनाथ की बहुत महत्ता है।

उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है हिंदुओं के चार धामों में से एक बदरीनाथ धाम…यहां भगवान विष्णु की उपासना की जाती है….बदरीनाथ के समीप ही भगवान विष्णु के ही चार अन्य मंदिर हैं, जिन्हें भविष्य, योगध्यान, वृद्ध और आदि बदरी के नाम से जाना जाता है…इन पांचों को मिलाकर पंच बदरी कहा जाता है…..बदरीनाथ समुद्र तल से तीन हजार तीन सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है….यहां से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर सीमांत गांव माणा है…जो भारत-चीन बॉर्डर पर स्थित है…..हर साल यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं….बदरीनाथ के कपाट प्रतिवर्ष वैशाख मास की अक्षय तृतीया पर खोले जाते हैं।

हालांकि, कोरोना के कारण इस वर्ष यह 15 दिन देरी से खुले थे…. कोरोना महामारी के कारण ही इस साल 30 जून तक बदरीनाथ धाम की यात्रा को स्थगित यानी टाल दिया गया है…… अब आपको बताते हैं कैसे प्रकट हुए भगवान बदरीनाथ…

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Chardham: क्या आपको पता है कौनसा है वह धाम जंहा रहते थे कभी स्वयं शिव पार्वती ? | Lord Shiva And Parvati Mataji
शिव पार्वती

बदरीनाथ में भगवान विष्णु की योगसाधना करते हुए की प्रतिमा है….पुराणों के अनुसार, बदरीनाथ धाम पहले भगवान शिव के कैलाश के अतिरिक्त निवास स्थानों में से एक था। वे यहां माता पार्वती के साथ निवास करते थे। एक बार भगवान विष्णु तप के लिए स्थान खोज रहे थे…खोजते खोजते वे इस स्थल पर पहुंचे….घने वृक्षों से आच्छादित और पर्वतों से घिरे इस स्थल को देखकर वे मोहित हो गए….और यहीं तप करने का निश्चय किया….लेकिन जब उन्हें पता चला कि यह भगवान भोले की निवास स्थली है और वे माता पार्वती के साथ यहां निवास करते हैं….उसके बाद भी उन्होंने यहीं तप करने का निर्णय किया….लेकिन वे भोले नाथ और माता से अपना निवास छोड़ने के लिए सीधे नहीं कह सकते थे….इसलिए उन्होंने एक बालक का रूप ले लिया….और रोने लगे…

बालक का विलाप सुनकर माता पार्वती का दिल पसीज गया…वे भगवान शिव के साथ उस स्थान पर पहुंची, जहां वह छोटा बालक रो रहा था……जब वे उसे उठाने जा रही थी तो भगवान शिव ने उन्हें ऐसा ना करने के लिए कहा…साथ ही यह भी कहा कि एकदम से यहां कोई बालक कैसे आ सकता है….इसे यहीं छोड़ दे….वरना इसका भुगतान निकट भविष्य में आपको करना पड़ेगा….लेकिन दोस्तों मां तो मां होती है….और माता पार्वती को जगतजननी है, ऐसे में उनकी ममता नहीं जागे ऐसा नहीं हो सकता…तो माता पार्वती ने भगवान आशुतोष से कहा कि वे बहुत निष्ठुर हैं….लेकिन वे एक अबोध बालक को ऐसे रोता हुआ नहीं छोड़ सकती….

इतना कहते हुए माता पार्वती बालक रूपी भगवान विष्णु को गोद में उठाकर भवन में ले गईं….यहां उन्होंने उस बालक को दूध पिलाकर चुप कराते हुए सुला दिया….इसके बाद वे भगवान शिव के साथ पास ही स्थित गर्म पानी के कुंड पर नहाने के लिए चली गईं…..जब दोनों वापस लौटे तो भवन के द्वार बंद पाए….माता पार्वती ने भोले नाथ से इसका कारण पूछा तो शिव बोले कि उन्होंने उन्हें पहले ही सचेत किया था….लेकिन वे नहीं मानी….वह बालक माता पार्वती का पुत्र है ऐसे में वे उस पर प्रहार नहीं कर सकते हैं…अतः दोनों को नया निवास ढूंढना पड़ेगा….इस पर माता पार्वती ने अन्यत्र निवास ढूंढने की बात मान ली….और दोनों केदारनाथ की ओर प्रस्थान कर गए….

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इसके बाद भगवान विष्णु ने यहीं तप किया और कालांतर में यह स्थल बदरीनाथ के नाम से विख्यात हुआ…..चारों कालों में इस स्थल के अलग अलग नाम थे…स्कंदपुराण और सतयुग में इस क्षेत्र को मुक्तिप्रदा के नाम से जाना जाता था….भगवान राम के काल यानी त्रेता युग में इसे योग सिद्ध, द्वापर यानी भगवान कृष्ण के काल में इसे मणिभद्र आश्रम या विशाला तीर्थ कहा गया। वर्तमान यानी कलयुग में इसे बद्रीकाश्रम या बदरीनाथ कहा जाता है……बदरीनाथ को सृष्टि का आठवां बैकुंठ भी कहा जाता है…

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आपने चार धामों (Chardham) के बारे में तो जरूर सुना, पढ़ा होगा….इस खबर में हम आपको चार धामों (रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, द्वारिका और बदरीनाथ) में से एक  धाम के बारे में कुछ रोचक जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
बदरीनाथ में भगवान विष्णु ने किया था तप

चलिए अब बदरीनाथ से जुड़ी दूसरी कथा से आपको अवगत कराते हैं….

इस कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु को तप के लिए स्थान चाहिए था….काफी ढूंढने पर उन्हें यह स्थान पसंद आया….उसके बाद वे यहां तप करने के लिए बैठ गए…..वे तप में लीन हो गए…..धीरे-धीरे उन पर हिमपात का हिम गिरने लगा…लेकिन वे तप में लीन थे….हिम के कारण आधे से अधिक ढंक गए….देवी लक्ष्मी को यह पता चला तो वे बहुत अधिक व्याकुल हो गई….वे उस स्थान पर पहुंची, जहां भगवान विष्णु तप में बैठे थे…..देवी लक्ष्मी ने बदरी यानी बेर के पेड़ का रूप धारण कर भगवान पर आच्छादित हो गई….जिससे भगवान विष्णु पर हिम ना गिरे….और सारे हिमपात को वे अपने ऊपर सहने लगीं….माता लक्ष्मी भी विष्णु भगवान को हिम से बचाने की तपस्या में जुट गई…

आपने चार धामों (Chardham) के बारे में तो जरूर सुना, पढ़ा होगा….इस खबर में हम आपको चार धामों (रामेश्वरम, जगन्नाथपुरी, द्वारिका और बदरीनाथ) में से एक  धाम के बारे में कुछ रोचक जानकारी उपलब्ध कराएंगे।
उत्तराखंड स्थित बदरीनाथ धाम और वहां मौजूद बदरी वृक्ष।

सैकड़ों वर्षों के बाद भगवान विष्णु जब अपने तप से उठे तो उन्होंने उन्होंने देवी लक्ष्मी को खुद पर बदरी रूप में आच्छादित पाया…..इससे खुश होकर भगवान विष्णु ने कहा कि हे देवी आपने भी मेरे बराबर ही तप किया है….इसलिए यह स्थान मुझे तुम्हारे नाम के साथ ही जाना और पूजा जाएगा…. हे देवी आपने बदरी वृक्ष के रूप में मेरी रक्षा की है…इसलिए मुझे इस स्थल पर बदरी के नाथ यानी बदरीनाथ के नाम से जाना जाएगा…..

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इस धाम के लिए कहावत है कि जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी….यानी जो बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। अर्थात वह जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाता है….विष्णु पुराण के अनुसार धर्म के दो पुत्र नर और नारायण हुए…जिन्होंने धर्म के विस्तार के लिए वर्षों तक यहां पर तपस्या की थी…वे अपना आश्रम स्थापित करने के लिए वृद्ध बदरी, योग बदरी, ध्यान बदरी और भविष्य बदरी नामक चार स्थानों पर घूमे…अंत उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी का झरना मिला…इसके पास के क्षेत्र को उन्होंने बदरी विशाल नाम दिया….

यह भी माना जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने इसी स्थान पर महाभारत की रचना की थी….अगले जन्म में नर ने अर्जुन और नारायण ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया…महाभारतकाल की एक मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बदरीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं।

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