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जस्टिस संजीव खन्ना ने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में ली शपथ

नई दिल्ली, 11 नवंबर – देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश (51st CJI of India) के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना (CJI Sanjiv Khanna) ने राष्ट्रपति भवन में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। जस्टिस खन्ना का यह नियुक्ति क्षण न्यायपालिका के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ है, विशेषकर उनकी न्यायिक यात्रा के दौरान दिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों को देखते हुए।

Oath Ceremony 51st CJI Sanjiv Khanna and President of India Droupdi Murmu,

जस्टिस खन्ना ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक निर्णयों में योगदान दिया। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने वाली पांच सदस्यीय पीठ का वह हिस्सा रहे हैं। इस फैसले के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त करने की कार्यवाही को मान्यता मिली, जो देश के संवैधानिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।


राष्ट्रपति भवन में शपथ समारोह

51st CJI Sanjiv Khanna, Chief Justice of India,

इस ऐतिहासिक अवसर पर देश के प्रमुख गणमान्य व्यक्ति और न्यायपालिका के उच्च अधिकारी राष्ट्रपति भवन में उपस्थित थे। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद जस्टिस खन्ना ने यह पद संभाला, जिससे न्यायपालिका के शीर्ष पद पर उनका आगमन हुआ। उनकी नियुक्ति से न केवल न्यायपालिका में नई ऊर्जा का संचार होगा, बल्कि उनके अनुभव और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से न्यायिक प्रणाली को भी लाभ मिलेगा।

President of India, Draupdi Murmu, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु,
जस्टिस संजीव खन्ना ने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में ली शपथ 12

जस्टिस खन्ना के प्रमुख फैसले

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में जस्टिस संजीव खन्ना ने कई महत्वपूर्ण फैसलों में अहम भूमिका निभाई। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने ईवीएम हेरफेर पर किए गए सवालों को निराधार साबित किया। इस मामले में, उन्होंने पेपर बैलेट प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को भी खारिज कर दिया, यह निर्णय देश की चुनाव प्रणाली में ईवीएम के उपयोग को और मज़बूत बनाता है।

इस निर्णय ने न केवल ईवीएम में जनता का भरोसा बनाए रखा बल्कि चुनाव प्रणाली में तकनीकी सुधार और पारदर्शिता के प्रति न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को भी दर्शाया।

अनुच्छेद 370 पर महत्वपूर्ण भूमिका

जस्टिस खन्ना का नाम सबसे ज़्यादा तब सुर्खियों में आया जब उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के मामले में केंद्र सरकार के फैसले को समर्थन दिया। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ का हिस्सा बनते हुए उन्होंने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के संवैधानिक निर्णय को सही ठहराया। यह निर्णय भारतीय संघीय ढांचे में एकता और समग्रता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।

ईवीएम हेरफेर मामले में निर्णय

जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईवीएम प्रणाली पर उठे संदेह को निराधार करार दिया। इस फैसले में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि पेपर बैलेट प्रणाली की ओर लौटने की आवश्यकता नहीं है, जिससे ईवीएम के प्रति आम जनता के भरोसे में वृद्धि हुई। न्यायपालिका का यह रुख देश में चुनाव सुधारों और आधुनिक तकनीकों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

मुख्यमंत्री केजरीवाल को जमानत

जस्टिस खन्ना की पीठ ने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाले में राहत प्रदान करते हुए 1 जून तक अंतरिम जमानत दी थी। इस फैसले से केजरीवाल को अपने चुनावी प्रचार में शामिल होने का मौका मिला और यह निर्णय उन मामलों में न्यायिक निष्पक्षता का प्रतीक है जहाँ संवेदनशील राजनीतिक मुद्दे शामिल होते हैं।

सेवानिवृत्ति और आगे की चुनौतियाँ

जस्टिस खन्ना का कार्यकाल मई 2025 में समाप्त होगा, लेकिन उससे पहले वे देश की न्यायिक प्रणाली में और भी कई महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके निर्णयों से स्पष्ट होता है कि उनके पास न केवल संवेदनशीलता है बल्कि न्याय प्रणाली के प्रति एक आधुनिक दृष्टिकोण भी है।

उनके निर्णयों में संविधान की अखंडता और जनहित को ध्यान में रखा गया है, जो उन्हें एक मजबूत और निष्पक्ष न्यायाधीश के रूप में स्थापित करता है। देश के नागरिकों को उम्मीद है कि वे अपने बाकी कार्यकाल में भी इसी तरह देश के न्यायिक ढांचे को मजबूती प्रदान करते रहेंगे।


Appointment of 51st CJI Sanjiv Khanna

जस्टिस संजीव खन्ना का मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल न्यायपालिका के लिए एक नये युग की शुरुआत है। उनके अनुभव, दृढ़ संकल्प और निष्पक्ष दृष्टिकोण ने उन्हें न केवल सर्वोच्च न्यायालय में बल्कि देश के न्यायिक इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया है। उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में नई दिशा और दृष्टिकोण की उम्मीद है, जो आने वाले समय में भारतीय संविधान और न्याय प्रणाली को और मजबूत बनाएगा।

इस नए सफर के साथ, न्यायपालिका और देश उनके नेतृत्व में एक नये दौर की ओर अग्रसर हैं।


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