अध्यात्म

12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है केदारनाथ, ऐसे प्रकट हुए थे भगवान शिव

हम आपको भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक केदारनाथ के रहस्यों से अवगत कराएंगे। हिमालय के केदार शृंग पर्वत पर स्थित केदारनाथ धाम के इन रहस्यों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं, जिन लोगों ने केदारनाथ धाम की यात्रा की है, उनमें से भी बहुत ही कम लोगों को इन रहस्यों के बारे में पता होगा। तो चलिए उठाते हैं उन रहस्यों पर से पर्दा….

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12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है केदारनाथ, ऐसे प्रकट हुए थे भगवान शिव 8

स्कन्द पुराण के अनुसार, एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव से केदार क्षेत्र के विषय में पूछा था। इस पर भगवान शिव ने उन्हें बताया कि केदार क्षेत्र उन्हें अत्यंत प्रिय है। वे कैलाश के अतिरिक्त यहां भी अपने गणों के साथ निवास करते हैं। इस क्षेत्र में वे तब से रहते आए हैं, जब उन्होंने सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा का रूप धारण किया था। इसी तरह, स्कन्द पुराण में ही इस स्थान की महिमा का वर्णन करती हुई एक कथा भी है।

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12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है केदारनाथ, ऐसे प्रकट हुए थे भगवान शिव | kedarnath 1

कथा के अनुसार, एक बहेलिया था जिसे हिरण का मांस खाना अत्यंत प्रिय था. एक बार वह शिकार की तलाश में केदार क्षेत्र में आया. पूरे दिन भटकने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिला. संध्या के समय नारद मुनि इस क्षेत्र में आये तो दूर से बहेलिया उन्हें हिरण समझकर उन पर बाण चलाने के लिए तैयार हुआ. जब तक वह बाण चलाता सूर्य पूरी तरह डूब गया. अंधेरा होने पर उसने देखा कि एक सर्प मेंढ़क का निगल रहा है. मृत मेढ़क शिवगणों के साथ शिवलोक जा रहा है। इसी तरह, एक हिरण को सिंह मार रहा है. मृत हिरण भी शिव गणों के साथ शिवलोक जा रहा है. इन अद्भुत दृश्यों को देखकर बहेलिया हैरान था. तभी नारद मुनि ब्राह्मण वेष में बहेलिया के सामने प्रकट हुए। बहेलिया ने ब्राह्मण रूपी नारद मुनि से इन दृश्यों के विषय में पूछा. नारद मुनि ने उसे समझाया कि यह अत्यंत पावन क्षेत्र है. इस स्थान पर मृत्यु प्राप्त करने वाले ना सिर्फ इंसान बल्कि पशु-पक्षियों को भी मुक्ति मिल जाती है. इसके बाद बहेलिया को अपने पाप कर्मों का स्मरण हो आया कि किस प्रकार उसने निरीह पशु-पक्षियों की हत्या की है. बहेलिया ने नारद मुनि से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा. नारद मुनि ने उसे पूरा उपाय बताया। इसके बाद बहेलिया केदार क्षेत्र में रहकर शिव उपासना में लीन हो गया. मृत्यु के बाद उसे भी शिवलोक में स्थान प्राप्त हुआ।

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