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सूरज में मंगल के आकार का सन स्पॉट, पृथ्वी को पहुंचा सकता है नुकसान

आम मत | न्यूयॉर्क

सूरज में दिखाई देने वाला विशाल स्पॉट पृथ्वी की ओर मुड़ रहा है। कुछ दिनों में इसका आकार और ज्यादा विशाल हो सकता है। इस सन स्पॉट को AR2770 नाम दिया गया है। इसका आकार मंगल ग्रह के बराबर माना जा रहा है।

वैज्ञानिकों के अनुसार, यह सनस्पॉट सौर चक्र 25 का सदस्य है। वैज्ञानिक इसकी विद्युत चुंबकीय गतिविधयों पर पिछले 11 सालों से नजर रखे हुए थे और इसमें छोटे धमाकों के अलावा कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हुए हैं। इस सनस्पॉट में उठ रहीं लपटें अभी इतनी हानिकारक नहीं हुई हैं कि इससे पूरा ग्रह ही तबाह हो जाए। इस स्पॉट की खोज अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत के ट्रेंटन के खगोलविद् मार्टिन वाइज ने की।

बताया जा रहा है कि अभी तक AR2770 ने पृथ्वी के वातावरण में बी क्लास फ्लेअर्स भेजी हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में यह सन स्पॉट और ज्यादा बड़ा हो जाएगा। साथ ही, इससे पृथ्वी की तरफ और ज्यादा लपटें व चुंबकीय तरंगें आएंगी। नासा के अनुसार, सोलर फ्लेयर्स ऊर्जा का एक अचानक विस्फोट है जो सूर्य के स्थानों के पास चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होता है।

मार्च 2020 में सूरज की सतह पर नजर आया था छोटा सा सन स्पॉट

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34 दिन शांत रहने के बाद मार्च 2020 में सूरज हरकत में आया था जब इसकी सतह पर एक छोटा सा सन स्पॉट सूर्य में उभरा है। हालांकि उस समय इस सन स्पॉट से सौर प्रज्‍वाल (सोलर फ्लेयर) होने की कोई संभावना नहीं है। उन्होंने बताया कि नया सन स्पॉट सूर्य के दक्षिणी गोलार्ध में उभरा है, जो बहुत छोटा है। यह सन स्पॉट आने वाले दिनों में फैलेगा या फिर समाप्त हो जाएगा, फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर नजर रखे हुए हैं।

सैटेलाइट्स के लिए खतरनाक है सोलर फ्लेयर

सन स्पॉट्स का बनना सूर्य की सक्रियता को दर्शाता है। जिनसे सोलर फ्लेयर बनती है और चुंबकीय तूफान उठते हैं। यह तूफान पृथ्वी तक पहुंचते हैं। धरती के वातावरण में फैले बेशकीमती सैटेलाइट्स के लिए सोलर फ्लेयर बेहद खतरनाक है।

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उत्तराखंड की आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के पूर्व निदेशक और वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक डॉ. वहाबउद्दीन के अनुसार सोलर फ्लेयर से निकलने वाले उच्च ऊर्जावान कण सैटेलाइट्स को डैमेज कर सकते हैं। जिनसे संचार सेवाएं बाधित होती हैं। जिस कारण दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां इन पर 24 घंटे निगाह रखते हैं। इनके अलावा इलेक्ट्रानिक व विद्युत उपकरणों के लिए भी यह बड़ा खतरा है।

1858 में हुई थी कैरिंगटन घटना

आखिरी बार ऐसा सौर घटनाक्रम वर्ष 1989 में हुआ था, और इस तरह की एक सबसे विघटनकारी घटना (सबसे खराब) 1858 में हुई थी- जिसे कैरिंगटन घटना कहा जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य के नए 11 साल के चक्र की शुरुआत में सौर भड़कने की पूरी पैमाने पर विघटनकारी प्रकृति के लिए कम से कम एक सदी का समय लगता है।

स्पष्ट रूप से 1989 से 2020 तक तीन दशकों से थोड़ा अधिक है और इस प्रकार AR2770 के कारण उपग्रह, या रेडियो संचार या पावर ग्रिड के कार्यों में गड़बड़ी शायद दूर की कौड़ी है। मजबूत सौर फ्लेयर्स में नुकसान करने की क्षमता होती है, लेकिन लगातार सौर नुकसान में समय लगता है।

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