- आबकारी विभाग ने मद्य संयम नीति के तहत उचित जागरूकता का प्रसार नहीं किया
आम मत | हरीश गुप्ता
जयपुर। ‘इसके पीने से तबीयत में रवानी आए, इसे बूढ़ा भी जो पीये तो जवानी आए।’ आबकारी विभाग मद्य संयम नीति तो भूल गया बस याद रखी तो फाइव राइफल्स फिल्म की कव्वाली। इस कव्वाली के बोल पर विभाग ऐसा झूमा कि राज्य में शराबियों की संख्या बढ़ गई।
जानकारी के मुताबिक, राज्य में शराब के उपभोग पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने मद्य संयम नीति बनाई थी। इस नीति के तहत शराब नहीं पीने या कम पीने के लिए लोगों में जागरूकता लाना था। विभाग जागरूकता अभियान को भूल ही गया, नतीजा शराब उपभोग की संख्या में इजाफा हो गया।
आवंटित बजट का महज 53 फीसदी ही खर्च हुआ प्रसारण माध्यमों पर
जानकारी के मुताबिक 2014-15 में मदिरा उपभोग 4830.35 बल्क लीटर था। अभियान के अभाव में वह बढ़कर 5726.23 बल्क लीटर हो गया। मजे की बात तो यह है कि 2015-18 के दौरान आवंटित बजट का मात्र 53 प्रतिशत ही प्रसारण माध्यमों पर व्यय किया गया। हमने पड़ताल की तो सामने आया कि जिला स्तर पर विभाग के आला अधिकारी दुकानों पर जाते तो है, लेकिन चेकिंग के नाम पर ‘प्रसाद’ लेकर आ जाते हैं। ‘प्रसाद’ के बाद ओवररेट की शिकायतें भी भूल जाते हैं।
राज्य के करीब सभी बार में सरकारी गोदामों की बजाय दुकानों से आती है शराब
सूत्रों ने बताया कि राज्य में लगभग सभी बार में सरकारी गोदाम से शराब और बीयर कम आती है शराब की दुकानों से ज्यादा आती है। उसका कारण है दुकान और बार की एक्साइज ड्यूटी में दोगुने का अंतर है। दुकान से बीयर-शराब सस्ती मिल जाती है, वहीं दुकान वाले का टारगेट भी पूरा हो जाता है। अधिकारियों को भी इस ‘खेल’ का पूरी तरह से पता है, लेकिन ‘प्रसाद’ का असर तो दिखाना ही पड़ेगा। वह अलग बात है सरकारी खजाने में करोड़ों का चूना लग जाता है, लेकिन इसकी किसी को परवाह नहीं है।