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कोरोना जांच निजी मेडिकल यूनिवर्सिटी को जबकि हर जिले में सरकारी मेडिकल कॉलेज

कोरोना ने किए कईयों के वारे- न्यारे

आम मत | हरीश गुप्ता

जयपुर। वाह रे कोरोना। एक और पूरे विश्व में त्राहिमाम मचा रखा है, लाखों लोगों की नौकरियां चली गई, तो लाखों के काम धंधे चौपट हो गए, वहीं कुछ के वारे-न्यारे भी हो गए। जिनके वारे न्यारे हुए हैं उनका बस चले तो यह बीमारी कुछ और साल चले तो अच्छा हो।

जानकारी के मुताबिक कोविड-19 की जांच प्रदेश स्तर पर एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज को दी हुई है। यह प्रत्येक जांच के 22 सौ रुपए वसूलता है, जबकि इस जांच में खर्च कितना आता है किसी भी बड़ी लैबोरेट्री से पता करने पर असलियत सामने आ जाएगी।

क्या सरकार को नहीं खुद के मेडिकल कॉलेजों पर भरोसा?

जानकारी के मुताबिक लगभग सभी जिला मुख्यालयों में सरकारी मेडिकल कॉलेज बने हुए हैं। ऐसे में वहीं जांच हो जाए तो सही दाम पर जांच हो जाएगी और अनावश्यक परिवहन भी बचेगा। क्या सरकार को खुद के मेडिकल कॉलेजों पर भरोसा नहीं है? वह कौन कौन से अधिकारी हैं जिन्होंने खुद का फायदा देखते हुए सरकार को गलफत में रखा? मंत्री पद मिलते ही उन्होंने भी मौन धारण कर लिया जो पहले विधानसभा में चीख चीख कर इन प्राइवेट यूनिवर्सिटी संचालकों को बेलगाम घोड़े बताते थे। क्या मंत्री बनते ही इनकी लगाम उनके हाथों में आ गई?

कोरोना जांच निजी मेडिकल यूनिवर्सिटी को जबकि हर जिले में सरकारी मेडिकल कॉलेज | nims medical college
प्रतिकात्मक

सरकारी खजाने में होना वाला पैसा जा रहा कहीं और

विधानसभा में यहां तक कहा गया है कि इन लोगों के फार्म हाउस में ब्यूरोक्रेट्स रातें रंगीन करते हैं। क्या इसी का नतीजा है कि ब्यूरोक्रेट्स ने जांच का काम प्राइवेट कॉलेज को दिलवा दिया? सूत्रों की मानें तो सरकारी मेडिकल कॉलेज में जांच होती तो रेट भी काफी सस्ती होती और उसके बाद भी सरकारी खजाने में भी इजाफा होता, लेकिन इस आड़ में कुछ की जेबों में जो ‘प्रसाद’ जा रहा है, वह नहीं जाता।

सचिवालय के गलियारों में चर्चा जोरों पर है, ‘कुछ ब्यूरोक्रेट्स तो ऊपर वाले से यही दुआ मांगते होंगे कि कुछ साल कोरोना और चले।’ कारण वैश्विक महामारी घोषित होने के बाद कोई टेंडर की जरूरत नहीं है और कोई ऑडिट की भी जरूरत नहीं होती। चाहे 10 की चीज 200 में खरीदो।

विभागों के आलाओं के कोरोना ने किए मजे

सूत्रों की मानें तो विभागों के आलाओं के कोरोना ने मजे कर दिए। उनकी कई पीढ़ियों का इंतजाम हो गया। विभाग भी ऐसे जो आम व्यक्ति के रोजमर्रा से जुड़े हुए हैं। ये सोच रहे होंगें कि किसी को दिख नहीं रहा, लेकिन यह भूल रहे हैं, ये पब्लिक है सब जानती है ये पब्लिक है…।

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आम मत

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