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किसान आंदोलन 28वां दिनः किसान संगठन बोले- कृषि कानून निरस्त हो, बदलाव नहीं चाहिए

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आम मत | नई दिल्ली

किसान आंदोन का बुधवार को 28 वां दिन था। गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार की ओर से एक बार फिर से बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया। किसान संगठन की ओर से कहा गया कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं। सिंघु बॉर्डर पर बुधवार को सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए किसान संगठनों की बैठक बुलाई गई थी।

बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि इन कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर जो प्रस्ताव सरकार से आया है उसमें कुछ भी साफ नहीं और स्पष्ट नहीं है।

दिन में सरकार की तरफ से सुलह की उम्मीदें तब जागीं, जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘किसान हमारे प्रस्ताव में जो भी बदलाव चाहते हैं, वो बता दें। हम उनकी सुविधा और समय के मुताबिक बातचीत के लिए तैयार हैं।’ सरकार ने यह पेशकश दोपहर 3:50 बजे रखी। हालांकि, इसमें कोई मांग मंजूर करने का जिक्र नहीं किया। 2 घंटे बाद यानी शाम 5:50 बजे किसानों ने कह दिया कि सरकार का मजबूत प्रपोजल क्या हो, यह हम कैसे बताएंगे। अगर वे पुरानी बातों को ही बार-बार दोहराएं तो बात नहीं बनेगी।

सरकार के खोखले और हास्यास्पद प्रस्ताव पर जवाब देना नहीं उचितः किसान

किसान संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार की ओर से आया प्रस्ताव इतना खोखला और हास्यास्पद है कि उस पर उत्तर देना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि हम तैयार हैं लेकिन सरकार ठोस प्रस्ताव लिखित में भेजे और खुले मन से बातचीत के लिए बुलाए. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि इन कानूनों को लागू करने की तारीख टाल दी जाए। ऐसे में बातचीत के लिए बेहतर माहौल बनेगा। सरकार को अड़ियल रुख छोड़कर किसानों की मांगें मान लेनी चाहिए। हम अमित शाह जी को पहले ही बता चुके हैं कि आंदोलन कर रहे किसान संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे।’

किसी मीटिंग में संशोधन की बात नहीं कही- योगेंद्र यादव

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किसान आंदोलन 28वां दिनः किसान संगठन बोले- कृषि कानून निरस्त हो, बदलाव नहीं चाहिए 7

योगेंद्र यादव ने कहा- आज तक किसी भी मीटिंग हमने नहीं कहा कि कानून में संशोधन पर विचार करना चाहिए। एक ही राय है कि कानून रद्द हो। गेंद सरकार के पाले में है, जो कुछ नहीं करना चाहती। वह हमारे पाले में गेंद फेंक रही है, जबकि गेंद तो शुरू से केंद्र सरकार से ही पाले में है। हमसे कहा गया कि ऊपर बात करके ठोस प्रस्ताव बनाएंगे। लेकिन, प्रस्ताव में वही पुरानी बातें थीं। गिफ्ट नहीं चाहिए। हमें क्या चाहिए, ये हम साफ कर रहे हैं। हमें दान नहीं चाहिए, दाम चाहिए। हमें फसलों की कीमत पर लीगल गारंटी चाहिए। सरकार का मजबूत प्रपोजल क्या हो, यह हम कैसे बताएंगे? अगर वे पुरानी बातों को ही बार-बार दोहराएं तो बात नहीं बनेगी।

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