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रघुराम राजन ने GDP की गिरावट पर जताई चिंता, कहा- ज्यादा सक्रिय सरकार की जरूरत

आम मत | नई दिल्ली

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में भारत की सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP में 23.9 फीसदी की गिरावट को रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने चिंता जताई। राजन ने कहा कि मौजूदा संकट के दौरान ज्यादा विचारवान और सक्रिय सरकार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नौकरशाही को अब आत्मसंतोष से बाहर निकलकर कुछ अर्थपूर्ण कार्रवाई करनी होगी।

राजन ने अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर पोस्ट में लिखा है कि आर्थिक वृद्धि में इतनी बड़ी गिरावट हम सभी के लिए चेतावनी है। भारत की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई है। (असंगठित क्षेत्र के आंकड़े आने के बाद यह गिरावट और अधिक हो सकती है)। वहीं, कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित देशों इटली में इसमें 12.4 प्रतिशत और अमेरिका में 9.5 प्रतिशत की गिरावट आई है।

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GDP आंकड़े अधिकारी तंत्र को आत्मसंतोष से निकालेगा बाहर

उन्होंने कहा कि इतने खराब GDP आंकड़ों की एक अच्छी बात यह हो सकती है कि अधिकारी तंत्र अब आत्मसंतोष की स्थिति से बाहर निकलेगा और कुछ अर्थपूर्ण गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेगा। राजन फिलहाल शिकॉगो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कोविड-19 के मामले अब भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में रेस्त्रां जैसी सेवाओं पर विवेकाधीन खर्च और उससे जुड़ा रोजगार उस समय तक निचले स्तर पर रहेगा, जब तक कि वायरस को नियंत्रित नहीं कर लिया जाता।

आर्थिक प्रोत्साहन को ‘टॉनिक’ के रूप में देखें: रघुराम राजन

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि अब आर्थिक प्रोत्साहन को ‘टॉनिक’ के रूप में देखें। ‘‘जब बीमारी समाप्त हो जाएगी, तो मरीज तेजी से अपने बिस्तर से निकल सकेगा। लेकिन यदि मरीज की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाएगी, तो प्रोत्साहन से उसे कोई लाभ नहीं होगा। राजन ने कहा कि वाहन जैसे क्षेत्रों में हालिया सुधार वी-आकार के सुधार (जितनी तेजी से गिरावट आई, उतनी ही तेजी से उबरना) का प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि यह दबी मांग है। क्षतिग्रस्त, आंशिक रूप से काम कर रही अर्थव्यवस्था में जब हम वास्तविक मांग के स्तर पर पहुंचेंगे, यह समाप्त हो जाएगी।

राजन ने कहा कि महामारी से पहले ही अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी और सरकार की वित्तीय स्थिति पर भी दबाव था। ऐसे में अधिकारियों का मानना है कि वे राहत और प्रोत्साहन दोनों पर खर्च नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि यह सोच निराशावादी है। सरकार को हरसंभव तरीके से अपने संसाधनों को बढ़ाना होगा और उसे जितना संभव हो, समझदारी से खर्च करना होगा।

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