आम मत | नई दिल्ली
उत्तराखंड के चमौली जिले में रविवार को हुए जलप्रलय का कारण अब तक ग्लेशियर का टूटना माना जा रहा था। अंतरराष्ट्रीय भूगर्भ वैज्ञानिकों ने इस दावे को खारिज कर दिया है। उनका दावा है कि यह हादसा ग्लेशियर टूटने के कारण नहीं बल्कि भूस्खलन के कारण हुआ है। ग्लेशियर एक्सपर्ट डॉ. डैन शुगर ने सैटेलाइट इमेज का अध्ययन कर दावा किया कि हादसा त्रिशूल पर्वत पर भूस्खलन के चलते ग्लेशियर पर बना दबाव के कारण हुआ।
उन्होंने अपने दावे को पुख्ता करने के लिए प्लेनैट लैब्स की सैटेलाइट तस्वीरों से स्पष्ट करने की कोशिश की। उन्होंने ट्वीट कर बताया कि तस्वीरों में स्पष्ट है कि हादसे के समय त्रिशूल पर्वत के ऊपर धूल का बड़ा गुबार दिखाई दे रहा था। ऊपर से जमी धूल और मिट्टी नीचे खिसककर आई, जिसके कारण हादसा हुआ। उन्होंने यह भी कहा कि ग्लेशियर के ऊपर डब्ल्यू (W) के आकार का भूस्खलन हुआ। इस कारण ऊपर से लटका ग्लेशियर तेजी से नीचे की तरफ आया।
डॉ. शुगर ने कहा कि सैटेलाइट तस्वीरों से साफ नजर आ रहा है कि हादसे के समय किसी तरह की ग्लेशियर झील नहीं बनी थी। न ही उसकी वजह से कोई फ्लैश फ्लड हुआ है। डॉ. शुगर ने दावा किया कि हादसे से ठीक पहले त्रिशूल पर्वत के ऊपर L आकार में हवा में धूल और नमी देखी गई।
ग्लेशियर के 3.5 किमी के हिस्से में हुई होगी टूट-फूट
एवलांच जब नीचे की तरफ स्थित नंदा देवी ग्लेशियर से टकराया तो उसकी वजह से काफी दबाव और गर्मी पैदा हुई होगी, जिससे ग्लेशियर का करीब 3.5 किमी चौड़े हिस्से में टूट-फूट हुई होगी। इसके बाद निचले इलाकों की तरफ ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक से बाढ़ आई। भूस्खलन के एक्सपर्ट भी त्रिशूल पर्वत पर लैंडस्लाइड की बात को सही मानते हैं।
ये ठीक उसी तरह है जैसा कि नेपाल में 2012 में सेती नदी में हुआ था। चमोली में जो भी हादसा हुआ है। उसके पीछे ग्लेशियर एवलांच और पर्वत के ऊपर भूस्खलन दोनों ही जिम्मेदार हो सकते हैं। यह सिर्फ ग्लेशियर के टूटने की वजह से नहीं हुआ है।