आम मत | जयपुर
राजस्थान कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खींचतानी का फायदा पंचायत चुनाव में भाजपा को मिला। सत्ता में होने के बावजूद कांग्रेस भाजपा से कम सीटें हासिल कर पाई। 21 जिलों में जिला परिषद के चुनाव हुए। इनमें 14 जिलों में भाजपा बोर्ड बना लेगी। वहीं, कांग्रेस मात्र 5 जिलों में ही बोर्ड बना पाएगी। नागौर में से 20 सीटें जीतकर भाजपा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी यानी रालोपा के साथ मिलकर बोर्ड बना लेगी।
गहलोत-पायलट के कोल्ड वॉर के अलावा कांग्रेस की हार का एक और अहम कारण है। वह कारण है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा। पीसीसी चीफ डोटासरा ने संगठन पर ज्यादा फोकस नहीं किया। वहीं, सचिन पायलट ने चुनाव में रुचि नहीं ली।
इधर, प्रदेशाध्यक्ष बनने के बावजूद डोटासरा ‘मंत्रीत्व’ में ही मुग्ध रहे और संगठन की टीम बनाने के लिए समय नहीं निकाल पाए। हालत यह रही कि वे खुलकर प्रचार तक करने नहीं गए। अपने जिले में ही पिछड़ गए। संगठन का दखल नहीं होने से कांग्रेस में अधिकतर टिकट सांसद-विधायकों ने ही बांट दिए। लिहाजा जमीनी पकड़ के बजाय अपनी जी-हुजूरी वालों के खाते में टिकट चले गए। कुछ ने परिवार में ही टिकट बांट लिए। यह भी सीटें कम आने का बड़ा कारण रहा।
दूसरी तरफ, मौजूदा पदाधिकारी पायलट खेमे के थे। उसने संगठन के दिशा-निर्देशों की बजाय अपने मन की बात ही मानी। इसने पंचायत चुनाव में कांग्रेस के लिए बगावत और भितरघात दोनों के रास्ते खोल दिए।