आम मत | नई दिल्ली
2 जुलाई की वह रात, जिसके बाद से विकास दुबे के गैंग डी-124 के अंत की शुरुआत होनी थी। इस रात को ही विकास के गैंग ने मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मियों को हत्या कर दी थी। इस वारदात की अगली सुबह यानी 3 जुलाई से शुरू हुई गैंग के खात्मे की शुरुआत।
वारदात को अंजाम देने के बाद डी-124 का सरगना विकास दुबे उत्तरप्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश की पुलिस को चकमा दे गया और पहुंच गया उज्जैन। यहां के महाकालेश्वर मंदिर में 9 जुलाई को पुलिस और स्थानीय मीडिया के सामने सरेंडर की स्टाइल में उसकी गिरफ्तारी हुई। इसी रात मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा उसे यूपी पुलिस को सौंप दिया। कानपुर से कुछ दूर पहले एसटीएफ ने गैंगस्टर का एनकाउंटर कर दिया।
विकास से पहले उसके मामा प्रेम कुमार पांडे, चचेरे भाई अतुल दुबे को तीन जुलाई को मार गिराया गया था। 8 जुलाई को शार्प शूटर अमर दुबे और 9 जुलाई को प्रभात झा और बऊआ दुबे का एनकाउंटर किया गया। सभी के एनकाउंटर की कहानी तकरीबन एक जैसी थी। पुलिस ने बताया था कि ये पुलिस पर हमला कर भागने की कोशिश कर रहे थे। मामले में 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इसमें चौबेपुर के पूर्व एसएचओ विनय तिवारी और बीट प्रभारी केके शर्मा का नाम भी शामिल है। इन पर मुखबिरी का आरोप है। उल्लेखनीय है कि कानपुर पुलिस ने 30 जून 2018 को विकास दुबे के गैंग का नामकरण किया। इसे डी-124 नाम दिया गया।
ये हैं पकड़ से दूर
- बब्बन शुक्ला – विकास का निजी बॉडीगार्ड
- हीरू दुबे – इनामी बदमाश। विकास के लिए विवादित प्रॉपर्टी कब्जाने का काम करता था।
- छोटू और शिव तिवारी – 50 हजार के इनामी दोनों आरोपी लोगों से वसूली करते थे।
- राम सिंह, शिवम दुबे, बउउन उर्फ उमाकांत और बाल गोविंद – विकास के लिए लोगों को धमकाना और सूचना देने का काम करते थे।
- जय बाजपेयी – विकास और उसकी पत्नी-बच्चों की फरारी में मदद की थी। एसटीएफ की हिरासत में।