देश में कोरोना यानी कोविड 19 का 30 जनवरी 2020 को जब पहला केस केरल में मिला तो किसी ने नहीं सोचा था कि भारत संक्रमण के मामले में तीसरे स्थान पर आ जाएगा। इसके बाद जब 12 मार्च को कोरोना से मौत का पहला मामला कर्नाटक के कलबुर्गी में हुई तो भी किसी को यह गुमान तक नहीं हो पाया था कि देश डेथ रेट में भी विश्वभर में तीसरे स्थान पर होगा। कोरोना के मामले सबसे पहले भले ही हमारे पड़ोसी देश चीन में पाए गए थे, लेकिन आज सर्वाधिक संक्रमित देशों की लिस्ट में काफी नीचे है। वहीं, भारत इस मामले में अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे पायदान पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान करके लॉकडाउन लगाने की कवायद शुरू की और 24 मार्च को 25 मार्च से 14 अप्रैल तक के लिए पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की। इसके बाद तीन और लॉकडाउन लगाए गए। चारों लॉकडाउन 31 मई को खत्म हुए और तब तक देश में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़कर एक लाख 90 हजार से ज्यादा हो गई थी। वहीं, 5405 लोग इस वायरस के चलते अपनी जान गंवा चुके थे।
इसके बाद कवायद शुरू हुई देश को अनलॉक करने की। गृहमंत्रालय ने गाइड लाइन जारी कर भारत को अनलॉक करने की कोशिश की, जिससे देश की हिल चुकी अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटाया जा सके। अभी सरकार और देशवासी इस कोशिश में जुटे थे कि फिर से पड़ोसी चीन ने एक और परेशानी भारत के लिए खड़ी कर दी। इस बार किसी वायरस के जरिए नहीं बल्कि सीमा पर। नए केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख स्थित गलवान घाटी पर एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पार करने की कोशिश चीन के सैनिकों द्वारा की गई। भारतीय सैनिकों ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। इसके बाद दोनों देशों के सैनिकों में तनातनी बढ़ती गई। हालांकि, दोनों सेनाओं के उच्चाधिकारियों ने तनाव को कम करने के लिए बातचीत का रास्ता अपनाया। वहीं, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता की भी पेशकश की, जिसे चीन-भारत की सरकारों की ओर से खारिज कर दिया गया। भले ही दोनों सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारी बात करके हल निकालने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन एलएसी पर तनाव बढ़ता ही जा रहा था। उच्चाधिकारियों ने हथियार इस्तेमाल न करने पर सहमति जाहिर की। दोनों ओर के सैनिकों में पिछले माह कई बार हाथापाई होने की घटनाएं सामने आई। 16-17 जून को तो एलएसी पर सैनिकों में जोरदार झगड़ा हुआ, जिसमें भारत के एक अफसर सहित 20 सैनिक शहीद हो गए। भारतीय रक्षामंत्रालय ने बयान जारी करते हुए बताया कि घटना में चीन के करीब 40 सैनिक भी मारे गए हैं। इस बयान की केंद्रीय मंत्री रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने भी पुष्टि की। इसके बाद भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और लगातार एलएसी पर तनाव बढ़ाए जा रहा है। भारतीय सेना उसकी हर हरकत पर नजर रखे हुए है और मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भी तैयार है।
वर्तमान परिपेक्ष में दोनों में से कोई भी देश सीधे तौर पर युद्ध नहीं कर सकता है। भारत ने कूटनीति का इस्तेमाल किया और बीएसएनएल जैसे सरकारी उपक्रमों में चीन के सामानों को प्रतिबंधित किया। इसके बाद चीन के टिकटॉक, यूसी ब्राउजर, कैम स्कैन जैसे 59 ऐप को बैन कर दिया। इसी तरह, रेलवे ने चीन की बीजिंग नेशनल रेलवे रिसर्च एंड डिजायन इंस्टीट्यूट ऑफ सिग्नल एंड कम्यूनिकेशंस ग्रुप कंपनी लिमिटेड को दिया गया 471 करोड़ रुपए के एक ठेके को रद्द कर दिया। भारत की इस नीति के चलते अब चीन पूरी तरह तिलमिला चुका है। अगर एक भारतीय की दृष्टि से देखें तो सरकार का यह कदम हौसला अफजाई करने वाला है। दूसरी ओर, व्यापक नजरिए से यह कदम थोड़ा परेशानी खड़ी करने वाला सा प्रतीत होता है। आंकड़ों की ओर गौर करें तो भारत से चीन 3 हजार आठ सौ 39 (3,839) करोड़ रुपए का स्टील लेता है और 12 हजार करोड़ रुपए के स्टील प्रोडक्ट हमें वापस बेच देता है। वहीं, पिछले 20 वर्षों की बात करें तो चीन से हमारा आयात 45 गुना बढ़ा है। हालांकि, निर्यात में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है।
सरकार के आंकड़ों पर नजर डाले तो पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में भारत का चीन को निर्यात 1.10 लाख करोड़ रुपए का था और आयात 4.40 लाख करोड़ रुपए रहा था। इसी तरह, 30 भारतीय स्टार्टअप यूनिकॉर्न (यूनिकॉर्न यानी जिन कंपनियों की वैल्यूएशन 100 करोड़ डॉलर से अधिक होता है) में से 18 में चीन की हिस्सेदारी है। चीन ने इन कंपनियों से 23 डील साइन की और 35 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया हुआ है। इन कंपनियों में पेटीएम, बायजू, जौमेटो, ओला जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं। अगर मेडिकल सेक्टर की बात करें तो भारत दवा निर्यात के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है। इसके विपरित हमारे देश में दवा बनाने के लिए रॉ मैटेरियल यानी कच्चा माल चीन से आयात होता है। देश की दवा निर्माता कंपनियां तकरीबन 70 फीसदी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) चीन से इंपोर्ट (आयात) करती हैं। वर्ष 2018-19 में इन कंपनियों ने 240 करोड़ डॉलर की दवाइयां और एपीआई आयात किए। वहीं, वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 1920 करोड़ डॉलर हो गया है। देश के सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी चीन की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
सभी आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि भले ही केंद्र सरकार ने चीन को झटका देने की तैयारी की हो। सिर्फ विभिन्न ऐप और कुछ ठेकों को रद्द करके अगर भारत सरकार चीन की अर्थव्यवस्था को झटका देने की तैयारी में है तो यह सोच गलत है। हां अगर हम चीन की अर्थव्यवस्था को सच में ही चोट पहुंचाना चाहते हैं, तो हमें पहले हमें खुद को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना पड़ेगा। यह महज कागजों में ही नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके लिए हमें पूरी तैयारी के साथ जमीनी स्तर पर भी काम करना होगा। देश को आने वाले पांच से 10 सालों के लिए इसके लिए एकजुट होकर काम भी करना होगा। साथ ही, सरकार को भी देशी कंपनियों को पूरी तरह स्वदेशी बनाने के लिए मदद भी करनी होगी। आने वाले वर्षों में अगर सच में भारत हर मामले में आत्मनिर्भर बन जाता है तो यह ना सिर्फ हमारी जीत होगी, बल्कि हर उस देश के लिए सबक होगा, जो भारत को कमतर आंक रहा था।