मोदी की यूक्रेन यात्रा 2024: भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” का प्रदर्शन
- भारत की गुटनिरपेक्ष नीति का इतिहास
- रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की भूमिका
- अमेरिका-भारत संबंधों में वृद्धि
- रूस से दूरी और चीन का बढ़ता प्रभाव
- भारत का संतुलन अधिनियम
हालिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की रणनीतिक स्वायत्तता के प्रदर्शन को मजबूत किया है। यह यात्रा भारत की पारंपरिक “गुटनिरपेक्ष” नीति और रूस के साथ लंबे समय से चले आ रहे संबंधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इस लेख में, हम इस यात्रा के भू-राजनीतिक प्रभावों, भारत-रूस संबंधों में आ रहे बदलाव, और अमेरिकी नीति पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करेंगे।
Introduction
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा ने मीडिया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। यह यात्रा उस समय हुई जब यूक्रेन अपने सबसे गंभीर संकट, रूस के साथ युद्ध, का सामना कर रहा है। भारत लंबे समय से रूस का रक्षा सहयोगी रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को भी मजबूत किया है। इस यात्रा ने भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति को एक नई दिशा दी है, जहां भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार विदेश नीति को निर्धारित कर रहा है।
Frequently Asked Questions
भारत की रणनीतिक स्वायत्तता क्या है?
रणनीतिक स्वायत्तता का मतलब है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है, बिना किसी बाहरी दबाव के। यह नीति भारत को वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है, ताकि वह किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर न हो।
भारत और रूस के संबंध कैसे हैं?
भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने हैं, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में। हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने रूस से अपनी सैन्य निर्भरता को कम करने और अमेरिका और यूरोपीय देशों से भी हथियारों की खरीद शुरू कर दी है।
मोदी की यूक्रेन यात्रा का क्या महत्व है?
यह यात्रा महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह भारत की विदेश नीति में एक बदलाव का संकेत देती है। भारत ने यूक्रेन के संघर्ष पर खुलकर रूस की आलोचना नहीं की, लेकिन मोदी ने शांति का आह्वान करते हुए कई बार कहा है कि “यह युद्ध का समय नहीं है”।
भारत की गुटनिरपेक्ष नीति का इतिहास
भारत ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई, जिसमें उसने किसी भी वैश्विक शक्ति खेमे में शामिल होने से बचते हुए अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखी।
- शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता: भारत ने सोवियत संघ और अमेरिका के बीच संतुलन बनाए रखा।
- रक्षा सहयोग: 1970 के दशक से भारत और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के बीच मजबूत रक्षा संबंध बने रहे।
- अमेरिका से दूरी: भारत लंबे समय तक अमेरिकी नीतियों से असहज रहा, खासकर जब अमेरिका ने पाकिस्तान को समर्थन दिया।
- हाल का बदलाव: 2010 के बाद, भारत ने अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सुधारना शुरू किया, जिससे उसकी रणनीतिक स्वायत्तता की नीति और महत्वपूर्ण हो गई।
रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत की भूमिका
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, भारत ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। भारत ने रूस की खुली आलोचना से बचते हुए शांति की अपील की, लेकिन उसने रूस से सस्ते ऊर्जा संसाधनों की खरीद जारी रखी।
- भारत का दृष्टिकोण: भारत ने रूस पर सीधे कोई प्रतिबंध नहीं लगाया, लेकिन उसने यूक्रेन के मानवीय संकट पर चिंता व्यक्त की।
- शांति की अपील: प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार कहा कि “यह युद्ध का समय नहीं है,” और उन्होंने दोनों पक्षों से शांति वार्ता का आह्वान किया।
- रूस से ऊर्जा खरीद: भारत ने रूस से छूट पर ऊर्जा खरीद की, जिससे घरेलू जरूरतों को पूरा किया और वैश्विक मुद्रास्फीति का सामना किया।
अमेरिका-भारत संबंधों में वृद्धि
हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और आर्थिक सहयोग बढ़ा है। हालांकि, अमेरिका के साथ संबंधों में सुधार के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को पूरी तरह से नहीं तोड़ा है।
- रक्षा सहयोग: भारत ने अमेरिका से रक्षा उपकरण खरीदने के लिए बड़े समझौते किए हैं।
- रणनीतिक साझेदारी: भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक और रक्षा साझेदारी मजबूत हो रही है, विशेष रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए।
- अमेरिकी संदेह: हालांकि भारत-अमेरिका संबंध मजबूत हो रहे हैं, भारत को अब भी अमेरिका की विश्वसनीयता पर संदेह है, विशेष रूप से पाकिस्तान को दी गई अमेरिकी सैन्य सहायता के कारण।
रूस से दूरी और चीन का बढ़ता प्रभाव
रूस-चीन के बढ़ते संबंध भारत के लिए एक चिंता का विषय हैं, खासकर जब से रूस ने चीन के साथ असीमित साझेदारी की घोषणा की है।
- रूस-चीन साझेदारी: चीन और रूस के बीच बढ़ते संबंधों से भारत चिंतित है, क्योंकि चीन भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा खतरा है।
- रूसी सैन्य आपूर्ति में गिरावट: रूस से मिलने वाले सैन्य उपकरणों की गुणवत्ता में कमी और चीन को प्राथमिकता देने से भारत अब अन्य विकल्पों की तलाश कर रहा है।
- स्वदेशी रक्षा उद्योग: भारत अब अपने स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने पर जोर दे रहा है, ताकि वह रूस पर निर्भर न रहे।
भारत का संतुलन अधिनियम
भारत ने रूस और अमेरिका के बीच एक संतुलन अधिनियम बनाए रखा है। रूस के साथ ऐतिहासिक संबंधों को बनाए रखते हुए, भारत अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी मजबूत कर रहा है।
- रूस के प्रति सहानुभूति: भारत में अब भी रूस के प्रति कुछ सहानुभूति है, खासकर उन लोगों में जो शीत युद्ध के समय के संबंधों को याद करते हैं।
- अमेरिका के प्रति संदेह: भारत में अमेरिका की विश्वसनीयता पर अब भी संदेह है, खासकर जब बात भारत की सुरक्षा चिंताओं की हो।
- चीन का दबाव: भारत ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वह चीन की प्रभुत्व वाली दुनिया को स्वीकार नहीं करेगा, और यह चीन के आक्रामक रवैये के कारण है।
- अमेरिकी सहयोग: अमेरिका को यह साबित करना होगा कि वह भारत का विश्वसनीय और बेहतर सहयोगी हो सकता है।
Conclusion
प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा ने भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति को और मजबूत किया है। भारत ने रूस के साथ अपने पुराने संबंधों को बनाए रखा है, लेकिन साथ ही अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को भी मजबूत किया है। यह संतुलन अधिनियम भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि चीन का बढ़ता प्रभाव भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। आगे बढ़ते हुए, अमेरिका को भारत को यह साबित करना होगा कि वह एक भरोसेमंद साथी हो सकता है, ताकि भारत अपनी 21वीं सदी की रणनीति में उसे प्राथमिकता दे सके।
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- भारत-रूस संबंध
- अमेरिका-भारत संबंध
- रूस-चीन साझेदारी