कश्मीर में 5 साल बाद पहली बार स्थानीय चुनाव: मतदान शुरू, सुरक्षा के कड़े इंतजाम
भारतीय नियंत्रित कश्मीर में 5 साल बाद पहली बार स्थानीय चुनाव का आयोजन हो रहा है, जो कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद का पहला चुनाव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा 2019 में कश्मीर से इसकी स्वायत्तता छीनने और इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद यह पहला मौका है जब यहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत मतदान हो रहा है। सुरक्षा के कड़े इंतजाम और विदेशी मीडिया की सीमित पहुंच के बीच यह चुनाव एक संवेदनशील मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है।
भारत नियंत्रित कश्मीर में स्थानीय सरकार के लिए मतदान शुरू
कश्मीर में बुधवार को स्थानीय सरकार के चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान शुरू हुआ। यह तीन चरणों में होने वाला चुनाव है, जो कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद का पहला चुनाव है। 2.3 मिलियन से अधिक मतदाता सात दक्षिणी जिलों में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर रहे हैं, जिसमें कुल 24 विधायक चुने जाएंगे। हालांकि, इस चुनाव को लेकर क्षेत्र में कड़े सुरक्षा बंदोबस्त किए गए हैं, और मतदान केंद्रों पर विदेशी मीडिया की पहुंच को सीमित कर दिया गया है।
यह चुनाव क्यों महत्वपूर्ण है?
यह चुनाव 2019 में कश्मीर से विशेष दर्जा छीनने और उसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद का पहला चुनाव है, और इसलिए यह राजनीतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है।
कश्मीर के विशेष दर्जे को क्यों हटाया गया था?
प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने 2019 में कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर इसे भारत के अन्य राज्यों के समान बना दिया। इसके तहत कश्मीर की स्वायत्तता, संविधान और जमीन से जुड़े अधिकार खत्म कर दिए गए थे।
विदेशी मीडिया की सीमित पहुंच का क्या कारण है?
चुनाव अधिकारियों ने विदेशी मीडिया की पहुंच सीमित कर दी है, और बिना किसी कारण बताए अधिकांश अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों को मान्यता नहीं दी गई है।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
इस चुनाव के पहले चरण के लिए कश्मीर में हजारों अतिरिक्त पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है। मतदान के दौरान किसी भी तरह की हिंसा को रोकने के लिए सुरक्षा बलों ने विभिन्न जिलों में चौकियाँ लगाई हैं और सख्त निगरानी रखी जा रही है।
- सुरक्षा बंदोबस्त: सुरक्षा बलों ने दंगा गियर पहने हुए और राइफल्स लेकर मतदान केंद्रों पर चौकियाँ स्थापित की हैं, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
- चुनाव प्रक्रिया: पहले चरण के मतदान के बाद, अगले चरण 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होंगे। इस दौरान सुरक्षा बलों को जगह-जगह तैनात किया जाएगा।
- वोटों की गिनती: 8 अक्टूबर को वोटों की गिनती होगी और उसी दिन चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे।
- विदेशी मीडिया पर पाबंदी: पहली बार विदेशी मीडिया की पहुंच को सीमित किया गया है, जिससे यह चुनाव और भी विवादास्पद बन गया है।
कश्मीर की स्थिति: एक नजर
कश्मीर हमेशा से भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का केंद्र रहा है। इस क्षेत्र में 1989 से चल रहे उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों के कारण कश्मीर राजनीतिक रूप से अस्थिर रहा है।
- भारत-पाकिस्तान विवाद: कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान दोनों का दावा है, लेकिन दोनों देशों के बीच यह विवाद दशकों से बना हुआ है।
- उग्रवाद और संघर्ष: भारतीय नियंत्रित कश्मीर में उग्रवादियों और भारतीय सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष चलता रहा है, जिसमें हजारों लोग मारे गए हैं।
- स्थानीय जनता की भावनाएं: अधिकांश मुस्लिम कश्मीरी अलगाववादी आंदोलन का समर्थन करते हैं, और वे कश्मीर को पाकिस्तान के साथ मिलाना या स्वतंत्र देश बनाना चाहते हैं।
- आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां: कश्मीर के लोगों को खासतौर पर 2019 के बाद से आर्थिक संकट और नागरिक स्वतंत्रताओं में कमी का सामना करना पड़ रहा है।
2019 के बदलाव और उनकी प्रतिक्रिया
2019 में, भारत सरकार ने कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करते हुए इसे केंद्रशासित प्रदेश में बदल दिया और इसके साथ जुड़े संवैधानिक अधिकारों को भी खत्म कर दिया। यह कदम भारतीय जनता पार्टी (BJP) की हिंदू राष्ट्रवादी नीति का हिस्सा था।
- विशेष दर्जे का अंत: कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले अधिकारों को खत्म कर दिया गया, जिससे कश्मीरियों के पास भूमि और नौकरियों से जुड़े विशेष अधिकार समाप्त हो गए।
- संविधान और स्वायत्तता का अंत: कश्मीर की अपनी संविधान और स्वायत्तता छीन ली गई, जिससे राज्य का दर्जा कम होकर केंद्रशासित प्रदेश में बदल गया।
- लद्दाख का गठन: इस बदलाव के तहत कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया।
- स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया: इन बदलावों से कश्मीरी जनता में भारी नाराजगी है, और स्थानीय लोग इसे अपनी स्वतंत्रता पर हमले के रूप में देखते हैं।
जनता की आशाएं और निराशाएं
चुनाव के दौरान कश्मीरी जनता में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। हालांकि लोग जानते हैं कि यह चुनाव कश्मीर विवाद को हल नहीं करेगा, फिर भी कई लोगों ने अपनी निराशा और गुस्सा जताने के लिए वोट डाला।
- अमीर अहमद की प्रतिक्रिया: पुलवामा के एक युवा मतदाता अमीर अहमद ने कहा कि वह ऐसा प्रतिनिधि चुनना चाहता है, जो गलत कामों का समर्थन न करे।
- अली मोहम्मद की आवाज: 80 वर्षीय किसान अली मोहम्मद ने कहा कि उनके खेत की जमीन छिन ली गई है, और वह इसे वापस पाने के लिए अपनी सरकार का समर्थन चाहते हैं।
- भविष्य की आशाएं: कई मतदाताओं का मानना है कि यह चुनाव स्थानीय मुद्दों जैसे रोजगार, महंगाई और विकास पर ध्यान देगा, भले ही यह कश्मीर विवाद को हल करने में सक्षम न हो।
चुनाव का भविष्य और परिणाम
यह चुनाव कश्मीर में स्थानीय सरकार को फिर से बहाल करने का एक प्रयास है, जो 10 साल बाद हो रहा है। इस चुनाव से कश्मीर को एक संविधान सभा मिलेगी, जो केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करेगी।
- सीमित अधिकार: हालांकि यह चुनाव स्थानीय सरकार को बहाल कर रहा है, लेकिन कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है। इससे चुनी हुई सरकार के पास सीमित अधिकार होंगे।
- प्रमुख मुद्दे: कई स्थानीय राजनीतिक दलों ने 2019 के फैसलों को पलटने का वादा किया है, और उनके मुख्य मुद्दे बेरोजगारी और महंगाई हैं।
- BJP का वादा: BJP ने 2019 के बदलावों को बनाए रखने का संकल्प लिया है, लेकिन साथ ही आर्थिक विकास में मदद करने का वादा किया है।
कश्मीर में हो रहा यह चुनाव राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। 2019 के बाद का यह पहला मौका है, जब कश्मीर की जनता को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अवसर मिल रहा है। हालांकि, जनता की मिश्रित भावनाओं के बावजूद, इस चुनाव का नतीजा कश्मीर के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा। मोदी सरकार द्वारा कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद, यह चुनाव वहां के राजनीतिक समीकरण को फिर से परिभाषित कर सकता है। जनता की आशाओं और चिंताओं के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी परिणाम किस दिशा में जाते हैं।
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