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Exclusive: अब GST नंबर के लिए इंस्पेक्टर करेगा फिजिकल वेरीफिकेशन

  • वाणिज्य कर विभाग ऑफलाइन पर उतरा
  • कोरोना काल में इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा
  • पहले ऑनलाइन मिल जाता था जीएसटी नंबर

आम मत | हरीश गुप्ता

जयपुर। एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें इंस्पेक्टर राज को खत्म करने में जुटी हुई है, काफी स्तर तक कमी भी लाई गई है। वहीं वाणिज्य कर विभाग ऑनलाइन सिस्टम बंद कर फिर से इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। वह भी तब जब पूरा देश कोरोना नाम की चीज से त्रस्त है। क्या विभाग अपने इंस्पेक्टरों की जान के पीछे पड़ा है?

जानकारी के मुताबिक किसी भी व्यापार को चलाने के लिए केंद्र सरकार ने कुछ वर्षों पूर्व जीएसटी लागू की थी। जीएसटी का नंबर लेने के लिए शुरू से ही ऑनलाइन आवेदन किया जाता था। आवेदन के तत्काल बाद उसे जीएसटी नंबर मिल जाता था। इस प्रोसेस से इंस्पेक्टर राज पर भी लगाम लग गई।

गुपचुप तरीके से वाणिज्य विभाग ने बंद की ऑनलाइन व्यवस्था

सूत्रों ने बताया कि गुपचुप में वाणिज्य कर विभाग ने इस ऑनलाइन व्यवस्था को बंद कर दिया। अब जीएसटी नंबर लेने के लिए आवेदन करना होगा। उसके बाद इंस्पेक्टर या विभाग का जांच अधिकारी फिजिकल वेरिफिकेशन करने आएगा और 7 दिन के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सबमिट कर देगा। उसके बाद विभाग उसे जीएसटी नंबर अलाॅट करेगा।

व्यापारियों के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है नया फरमान

सूत्रों की मानें तो कोरोना काल में व्यापारी पहले ही त्राहिमाम कर रहे हैं ऐसे में यह नया फरमान और परेशानी खड़ी करेगा। कहीं ऐसा ना हो नए व्यापारियों का मानस टैक्स देने की बजाय बेईमानी करने का बन जाए। वैसे भी कोई झंझट में क्यों पड़ेगा?

नया व्यापार शुरू करने से पहले कोई आफत मोल क्यों लेगा? यह तो सीधा-सीधा है कि जो नया व्यापार शुरू करने का मानस बना रहा है वह सरकार को टैक्स देने की मंशा रखता है और तभी जीएसटी नंबर ले रहा है। उसे बेईमानी ही करनी है तो वह जीएसटी नंबर ही क्यों लेगा?

फर्जी जीएसटी नंबरधारकों पर लगे जुर्माना, नए उद्यमियों को परेशान करना गलत

जानकारी के मुताबिक इस संबंध में कुछ व्यापारियों व सीए से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि अगर किसी फर्म ने फर्जी जीएसटी नंबर ले लिए हैं तो उनका वेरिफिकेशन कर भारी जुर्माना लगाना चाहिए, लेकिन नए उद्यमी को परेशान करना ठीक नहीं है। पहले ही देश की जीडीपी इस कदर नीचे पहुंची है कि बताते हुए भी शर्म महसूस होती है। ऐसे में यह फैसला उचित नहीं है।

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